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ग़ज़ल
ज़ख़्म-ए-फ़ुर्क़त को तिरी याद ने भरने न दिया
ग़म-ए-तंहाई मगर रुख़ पे उभरने न दिया
अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन
ग़ज़ल
घटा जब रक़्स करती है तो उन की याद आती है
कभी जब मेंह बरसती है तो उन की याद आती है