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ग़ज़ल
नक़्श-गरी का बूता हो तो धूप छाँव में रंग बहुत
चेहरा ख़ुद बन जाएगा टेढ़ी-मेढ़ी अश्काल के बाद
ज़फ़र गोरखपुरी
ग़ज़ल
ये तेरी बे-रुख़ी तेरा तग़ाफ़ुल बेकली तेरी
इन्हीं अश्काल में इस दिल को बहलाना भी होता है
ख़ालिद कोटी
ग़ज़ल
महबूस हूँ ग़ारों में मगर आज़र-ए-तख़ईल
चट्टानों में अश्काल-ए-हुनर काट रहा है
बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन
ग़ज़ल
क़ैसर ख़ालिद
ग़ज़ल
पहुँचना तुम तक मियाँ अपना तो इक अश्काल है
होवे ता मिलना तिरा हम को मयस्सर हम से मिल
हसरत अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
मैं ने कल इश्काल सारे ख़त्म उस के कर दिए
वर्ना मेरी ज़ात से वो बद-गुमाँ होने को था