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ग़ज़ल
मुझे नक़्ल पर भी इतना अगर इख़्तियार होता
कभी फ़ेल इम्तिहाँ में न मैं बार बार होता
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
ग़ज़ल
इश्क़ में इतना असर हो ये ज़रूरी तो नहीं
उन को अब मेरी ख़बर हो ये ज़रूरी तो नहीं