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ग़ज़ल
पहुँचना था जो अर्ज़-ए-हाल को अर्श-ए-मुअज़्ज़म तक
कई शब से वही नाला मिरे लब तक नहीं आता
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
'शाद' वक़्त-ए-नज़अ' था ख़ामोश लेकिन देर तक
नाम रह रह कर किसी का ज़ेर-ए-लब आता रहा
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
ज़बान-ए-'शाद' पर आता है तेरा नाम ऐ ख़ालिक़
हर इक आग़ाज़ से पहले हर इक तहरीर से पहले