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ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
चश्म-ए-साक़ी से पियो या लब-ए-साग़र से पियो
बे-ख़ुदी आठों पहर हो ये ज़रूरी तो नहीं
ख़ामोश ग़ाज़ीपुरी
ग़ज़ल
हम ने चुप रहने का अहद किया है और कम-ज़र्फ़
हम से सुख़न-आराओं जैसी बातें करते हैं
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
निगाहें ताड़ लेती हैं मोहब्बत की अदाओं को
छुपाने से ज़माने भर की शोहरत और होती है