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ग़ज़ल
सुनो तुम अपनी जो तेग़-ए-निगाह के औसाफ़
जो तुम को सुनना हो उस शोख़-ए-दिल-सिताँ से सुनो
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
बे-मुरव्वत बेवफ़ा ना-मेहरबाँ ना-आश्ना
जिस के ये औसाफ़ कोई उस से हो क्या आश्ना
मीर मोहम्मदी बेदार
ग़ज़ल
तीन सौ तेरह के जैसे शर्त हैं औसाफ़ भी
फ़त्ह ना-मुम्किन है ख़ाली नारा-ए-तकबीर पर
अब्दुस सत्तार दानिश
ग़ज़ल
तुम हो मुजरिम हम हैं मुल्ज़िम चलो नया इंसाफ़ करें
तुम भी हमें मुआ'फ़ी दे दो हम भी तुम्हें मुआ'फ़ करें
सरदार पंछी
ग़ज़ल
बताए जाते हैं औसाफ़ वो अपनी अदाओं के
ये शान-ए-दिल-रुबाई है ये तर्ज़-ए-जाँ-सतानी है
जलील मानिकपूरी
ग़ज़ल
शाइ'रों का काम क्या तंसीक़-ए-औसाफ़-ओ-लुग़ूत
या सना शाहों की या मदह-ए-सरापा-ए-बुताँ
अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद
ग़ज़ल
ग़ीबत-ए-दहर बहुत गोश-ए-गुनहगार में है
कुछ ग़म-ए-इश्क़ के औसाफ़-ए-करीमाना सुना