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ग़ज़ल
बिसात-ए-ख़ाक भी तपाँ ख़ला भी है धुआँ धुआँ
बस इक अज़ाब-ए-नार है ज़मीं से आसमान तक
राग़िब मुरादाबादी
ग़ज़ल
इक इम्तिहान-ए-वफ़ा है ये उम्र भर का अज़ाब
खड़ा न रहता अगर ज़लज़लों में क्या करता
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
तिरा मज़ाक़-ए-मोहब्बत है कुफ़्र-ओ-दीं से बुलंद
मगर वो माया-ए-नूर-ओ-मता’-ए-नार भी है
ज़हीन शाह ताजी
ग़ज़ल
मिरे काम-ओ-दहन की आज़माइश के लिए शायद
मय-ए-दो-आतिशा पैहम ब-रंग-ए-नूर-ओ-नार आई
प्रेम शंकर गोयला फ़रहत
ग़ज़ल
दिल में है अनवर आज भी आतिश-ए-ग़म से रौशनी
मिलती है इस मक़ाम पर सरहद-ए-नूर-ओ-नार क्या
अनवर शादानी
ग़ज़ल
मलंग आपस में कहते थे कि ज़ाहिद कुछ जो बोले तो
इशारा उस को झट सू-ए-नर-अंगुश्त-ए-शिकम कीजे
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
अज़ाब-ए-शिद्दत-ए-कर्ब-ए-जुदाई को वो क्या जाने
कि देखा ही न हो जिस ने निकलती जान का मंज़र