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ग़ज़ल
उजाड़ मौसम में रेत-धरती पे फ़स्ल बोई थी चाँदनी की
अब उस में उगने लगे अँधेरे तो कैसा जी में मलाल रखना
एज़ाज़ अहमद आज़र
ग़ज़ल
फ़स्ल बोई जाएगी सुनते हैं अब मिर्रीख़ पर
दूरियाँ यूँ बढ़ रही हैं खेत से खलियान से
अतीक़ मुज़फ़्फ़रपुरी
ग़ज़ल
जो दुख की फ़स्ल बोई है तो अब दुख काटना होगा
मुकाफ़ात-ए-अमल समझे इशारा हो गया होता
सबीला इनाम सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
बद-तर ख़िज़ाँ से है हमें इस बाग़ की बहार
बोई निफ़ाक़ फूल में ही ज़हर फल में है