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ग़ज़ल
कीजिए नाले ब-रंग-ए-बुलबुल ऐ दिल गर कभी
टुकड़े टुकड़े मिस्ल-ए-गुल कर ले तेरी पोशाक को
मीर कल्लू अर्श
ग़ज़ल
मीर मोहम्मदी बेदार
ग़ज़ल
रिश्ता-ए-उल्फ़त ने बाँधे हैं पर-ए-पर्वाज़ आह
दाम-ए-हैरत में ब-रंग-ए-बुलबुल-ए-तस्वीर हूँ
शाह नसीर
ग़ज़ल
ख़ाक करती है ब-रंग-ए-चर्ख़-ए-नीली-फ़ाम रक़्स
हर दो-आलम को तिरा रखता है बे-आराम रक़्स
बयान मेरठी
ग़ज़ल
ब-रंग-ए-निकहत-ए-गुल है चमन में आशियाँ अपना
किसी के राज़दाँ हम हैं न कोई राज़-दाँ अपना
क़ैसर अमरावतवी
ग़ज़ल
ब-रंग-ए-बू-ए-गुल उस बाग़ के हम आश्ना होते
कि हमराह-ए-सबा टुक सैर करते फिर हवा होते