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ग़ज़ल
सय्यद मुज़फ़्फ़र आलम ज़िया अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
खिचे अबरू चढ़ी चितवन ग़ज़ब बदले हुए तेवर
बशक्ल-ए-ख़ंजर-ए-खूँ-ख़्वार 'आशिक़ की क़ज़ा तुम हो
प्यारे लाल रौनक़ देहलवी
ग़ज़ल
मेरी फ़ितरत में थी पिन्हाँ वो बहार-ए-दाइम
मैं बहर-रंग ब-शक्ल-ए-गुल-ए-ख़ंदाँ निकला
प्रेम नारायण सक्सेना राज़
ग़ज़ल
वो मुर्ग़-ए-बिस्मिल-ए-उल्फ़त फ़िदा-ए-हुस्न तिरा
ब-शक्ल-ए-ताइर-ए-रंग-ए-परीदा आया था
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
'बहर' अपनी अपनी क़िस्मत है ब-शक्ल-ए-मेहर-ओ-माह
ज़र उसे बख़्शा उसे कासा दिया ख़ैरात का
इमदाद अली बहर
ग़ज़ल
क्यूँ हो ख़िज़्र-ए-रह-रवाँ ख़ाक-नशीनी पे मिरी
जिस ने बशक्ल-ए-नक़्श-ए-पा मुझ को है रहनुमा किया
शाह नसीर
ग़ज़ल
हमेशा ख़ाक-ओ-ख़ूँ में मुझ को बेताबी बिठाया की
ब-शक्ल-ए-मुर्ग़-ए-बिस्मिल कौन से पहलू नहीं फड़का
नसीम देहलवी
ग़ज़ल
ब-शक्ल-ए-क़िस्सा-ए-दार-ओ-रसन न हो मशहूर
वो इक फ़साना-ए-ग़म तुम ने जो सुना भी नहीं
हबीब अहमद सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
ब-शक्ल-ए-सब्ज़ा-ओ-गुल अब निकल रहा हूँ जहाँ
गया था ला के इन्हीं जंगलों में मारा मैं
सरफ़राज़ ख़ालिद
ग़ज़ल
क्यूँ न वहशत में चुभे हर मू ब-शक्ल-ए-नीश-तेज़
ख़ार-ए-ग़म की तेरे दीवाने की काविश और है