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ग़ज़ल
यक-ब-यक मौसम की तब्दीली क़यामत ढा गई
रुक के सुस्ताना था जब मुझ को कड़ी धूप आ गई
अख़्तर होशियारपुरी
ग़ज़ल
यक-ब-यक दिल से तिरा जल्वा-नुमा हो जाना
वो मिरा हुस्न के शो'लों में फ़ना हो जाना
आरज़ू सहारनपुरी
ग़ज़ल
गए दिनों की मुसाफ़िरत का ब-यक-क़लम इश्तिहार लिखना
मिरे पसीने का प्यार लिखना लहू का अपने क़रार लिखना
रशीद एजाज़
ग़ज़ल
उबल पड़ा यक-ब-यक समुंदर तो मैं ने देखा
खुला जो राज़-ए-सुकूत लब पर तो मैं ने देखा
ग़ुलाम मुर्तज़ा राही
ग़ज़ल
फेंकी किसी ने कंकरी दिल यक-ब-यक दरिया हुआ
दरिया में इक सैलाब था सैलाब था उमडा हुआ