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ग़ज़ल
रौनक़-ए-अर्ज़-ओ-समा शम्स ओ क़मर मैं ही हूँ
ग़ौर से देखिए ता-हद्द-ए-नज़र मैं ही हूँ
मुज़फ़्फ़र अबदाली
ग़ज़ल
इक मोहब्बत के एवज़ अर्ज़-ओ-समा दे दूँगा
तुझ से काफ़िर को तो मैं अपना ख़ुदा दे दूँगा
अहमद नदीम क़ासमी
ग़ज़ल
वुसअ'त मिरे ख़याल में अर्ज़-ओ-समा की है
महरम नज़र मिरी हरम-ए-किब्रिया की है
रसूल जहाँ बेगम मख़फ़ी बदायूनी
ग़ज़ल
साहिब-ए-मेहर-ओ-वफ़ा अर्ज़-ओ-समा क्यूँ चुप है
हम पे तो वक़्त के पहरे हैं ख़ुदा क्यूँ चुप है
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
शरह-ए-जाँ-सोज़-ए-ग़म-ए-अर्ज़-ए-वफ़ा क्या करते
तुम भी इक झूटी तसल्ली के सिवा क्या करते