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ग़ज़ल
मैं ने क्या इफ़्शा किया राज़ उन का सोच ऐ हम-नशीं
बाइ'स-ए-इफ़शा-ए-राज़ उन की हया थी मैं न था
हकीम आग़ा जान ऐश
ग़ज़ल
इफ़्शा-ए-राज़-ए-इश्क़ का मुझ से हो क्या गिला
क्या तुम छुपा सके हो उसे इस हया के साथ
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
ग़ज़ल
इफ़्शा-ए-राज़-ए-इश्क़ जो अश्कों ने कर दिया
डूबा हुआ है दिल अरक़-ए-इंफ़िआ'ल में
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
ग़ज़ल
इफ़शा-ए-राज़-ए-दिल तो बड़ा ऐब है मगर
हो गर अदब के साथ तो दाख़िल हुनर में है
फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली
ग़ज़ल
सही इफ़्शा-ए-राज़-ए-इश्क़ लेकिन ये मुसीबत है
न करते सज्दा तेरे दर पर आख़िर तो कहाँ करते
शौकत थानवी
ग़ज़ल
किया इफ़शा-ए-राज़-ए-हुस्न हर तस्वीर कहती है
ग़लत समझा 'मुसव्विर' को जो तुम ने राज़-दाँ समझा
मुसव्विर करंजवी
ग़ज़ल
भरे घर में मिरे जोश-ए-जुनूँ से ख़ौफ़-ए-रुस्वाई
मुझे इफ़्शा-ए-राज़-ए-इश्क़ का खटका भरे घर से
शाद आरफ़ी
ग़ज़ल
ऐ चश्म कर न दिन को तो इफ़्शा-ए-राज़-ए-इश्क़
रोने के वास्ते नहीं कुछ कम तमाम रात
मुज़फ़्फ़र अली असीर
ग़ज़ल
हो गया इफ़्शा-ए-राज़-ए-‘इश्क़ इस को क्या करूँ
मरते दम मेरी ज़बाँ पर उन का नाम आ ही गया
धर्मपान गुप्ता वफ़ा देहलवी
ग़ज़ल
बढ़ा एक और ग़म इफ़्शा-ए-राज़-ए-इश्क़ से वर्ना
न मैं खुलता न वो कहते कि ऐसा हो नहीं सकता
साक़िब लखनवी
ग़ज़ल
इफ़्शा-ए-राज़-ए-इश्क़ का अज़्म-ए-बुलंद है
'मज़हर' अब और ताक़त-ए-ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ नहीं