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ग़ज़ल
कैफ़ बाक़ी है वो इस में कि नहीं जिस को ख़ुमार
बादा-ए-शेर कोई बादा-ए-अंगूर नहीं
दत्तात्रिया कैफ़ी
ग़ज़ल
आले रज़ा रज़ा
ग़ज़ल
कोई बादा-कश जिसे मय-कशी का तरीक़-ए-ख़ास न आ सका
ग़म-ए-ज़िंदगी की कशा-कशों से कभी नजात न पा सका
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
याँ बादा-ए-अहमर के छलकते हैं जो साग़र
ऐ पीर-ए-मुग़ाँ देख कि है सारी दुकाँ सुर्ख़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
ये वक़्त का है तक़ाज़ा कि है फ़रेब-ए-नज़र
कि बेटा बाप के क़द से बड़ा दिखाई दे
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
ग़ज़ल
ख़ल्लाक़-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ बड़ा दिल-नवाज़ है
तख़्लीक़-ए-शम्अ' होते ही परवाना बन गया
आले रज़ा रज़ा
ग़ज़ल
शैख़-ए-ज़माँ क़दीम रविश के बुज़ुर्ग हैं
कितना बड़ा है गुम्बद-ए-दस्तार देखना
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
तोडूँगा ख़ुम-ए-बादा-ए-अंगूर की गर्दन
रख दूँगा वहाँ काट के इक हूर की गर्दन
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
मौज-दर-मौज रवाँ बादा-ए-सर-जोश-ए-शबाब
आलम-ए-कैफ़ है आलम तिरी अंगड़ाई का