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ग़ज़ल
और कोई बात सर-ए-बज़्म-ए-सुख़न कब निकली
बस तिरी बात ही निकली है यहाँ जब निकली
मेहदी बाक़र ख़ान मेराज
ग़ज़ल
क्या गुज़रती है ख़बर है तुझे ऐ रूह-ए-'फ़िराक़'
दिल-ए-'जौहर' पे सर-ए-बज़्म-ए-सुख़न तेरे बाद
चंद्र प्रकाश जौहर बिजनौरी
ग़ज़ल
'नासिरी' पाई न फ़ुर्सत कि ग़ज़ल कहते ख़ूब
हौसला कुछ न सर-ए-बज़्म-ए-सुख़न-दाँ निकला
नासिरी लखनवी
ग़ज़ल
उस के लफ़्ज़ों में वो जादू है सर-ए-बज़्म-ए-सुख़न
लब हिलाता है कि तस्वीर बना देता है
नवेद फ़िदा सत्ती
ग़ज़ल
कौन 'अंजुम' के मुक़ाबिल है सर-ए-बज़्म-ए-सुख़न
मुनफ़रिद आप का अंदाज़-ए-बयाँ होता है
सय्यद अंजुमन जाफ़री
ग़ज़ल
अंजुम उसमान
ग़ज़ल
थे कभी 'मश्कूर' हम भी रौनक-ए-बज़्म-ए-सुख़न
हम भी शामिल थे शुमार-ए-शाएरान-ए-ज़िंदगी
मश्कूर मुरादाबादी
ग़ज़ल
फ़रोग़-ए-इल्म से रौशन है शम-ए-बज़्म-ए-सुख़न
सला-ए-आम है यारान-ए-नुक्ता-दाँ के लिए
साहिर देहल्वी
ग़ज़ल
ऐ बज़्म-ए-सुख़न तेरा ऐसे में ख़ुदा-हाफ़िज़
पलकें वो झुकी सी हैं 'मानी' भी ग़ज़ल-ख़्वाँ है