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ग़ज़ल
बार-हा दिल को मैं समझा के कहा क्या क्या कुछ
न सुना और खोया मुझ से मिरा क्या क्या कुछ
मोहम्मद रफ़ी सौदा
ग़ज़ल
बार-हा ख़ुश हो रहे हैं क्यूँ इन्ही बातों पे लोग
बार-हा जिन पे उन्हें आँसू बहाने चाहिएँ
राजेश रेड्डी
ग़ज़ल
बार-हा ऐसा हुआ है याद तक दिल में न थी
बार-हा मस्ती में लब पर उन का नाम आ ही गया