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ग़ज़ल
कौन सहराओं की प्यास है इन मकानों की बुनियाद में
बारिशों से अगर बच भी जाएँ तो दरिया नहीं छोड़ता
तहज़ीब हाफ़ी
ग़ज़ल
जो बारिशों से क़ब्ल अपना रिज़्क़ घर में भर चुका
वो शहर-ए-मोर से न था प दूरबीं बला का था
परवीन शाकिर
ग़ज़ल
अजीब मंज़र है बारिशों का मकान पानी में बह रहा है
फ़लक ज़मीं की हुदूद में है निशान पानी में बह रहा है
शकील आज़मी
ग़ज़ल
दिल बुझा बुझा हो तो क्या बुरा है रोने में
बारिशों के बा'द अंजुम आसमाँ निखरता है