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ग़ज़ल
तुम्हारी यादें पत्थर बाज़ियाँ करती हैं सीने में
हमारे हाल भी अब हू-ब-हू कश्मीर वाले हैं
वरुन आनन्द
ग़ज़ल
करता है कोई तुर्क-दिला नेज़ा-बाज़ियाँ
दुम्बाला सुरमे का ये नहीं चश्म-ए-यार में
गोया फ़क़ीर मोहम्मद
ग़ज़ल
लगाएँ जो सरों की बाज़ियाँ ये काम उन का है
इमामत क्या करेंगे झुक के पानी माँगने वाले
मंज़र भोपाली
ग़ज़ल
न वो मह-जबीनों की टोलियाँ न वो रंग रंग की बोलियाँ
न मोहब्बतों की वो बाज़ियाँ कभी जीतते कभी हारते
हसन रिज़वी
ग़ज़ल
दहक उट्ठा बदन उस का हमारे शो'ला-ए-लब से
जला लेकिन बदन अपना भी आतिश-बाज़ियाँ बन कर
अब्दुल मन्नान समदी
ग़ज़ल
तरन्नुम ही कुछ ऐसा था बिचारा क्या करे 'वाहिद'
कि हुल्लड़ और नारे बाज़ियाँ दोनों तरफ़ से हैं
वहिद अंसारी बुरहानपुरी
ग़ज़ल
निगाहों में समाए दिल में उतरे रूह तक पहुँचे
इशारे-बाज़ियाँ दिल-रेज़याँ सरगोशियाँ कर के