आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "bach"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "bach"
ग़ज़ल
ग़ैर की नज़रों से बच कर सब की मर्ज़ी के ख़िलाफ़
वो तिरा चोरी-छुपे रातों को आना याद है
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
नई उम्रों की ख़ुद-मुख़्तारियों को कौन समझाए
कहाँ से बच के चलना है कहाँ जाना ज़रूरी है
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
ये दिल बच कर ज़माने भर से चलना चाहे है लेकिन
जब अपनी राह चलता है अकेला होने लगता है
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
शाम हुए ख़ुश-बाश यहाँ के मेरे पास आ जाते हैं
मेरे बुझने का नज़्ज़ारा करने आ जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
क़दम इंसाँ का राह-ए-दहर में थर्रा ही जाता है
चले कितना ही कोई बच के ठोकर खा ही जाता है
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
कौन सहराओं की प्यास है इन मकानों की बुनियाद में
बारिशों से अगर बच भी जाएँ तो दरिया नहीं छोड़ता