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ग़ज़ल
मुझ को यक़ीं है सच कहती थीं जो भी अम्मी कहती थीं
जब मेरे बचपन के दिन थे चाँद में परियाँ रहती थीं
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
लिपट जाती है सारे रास्तों की याद बचपन में
जिधर से भी गुज़रता हूँ मैं रस्ता याद रहता है
मुनव्वर राना
ग़ज़ल
मैं ने अब तक जितने भी लोगों में ख़ूद को बाँटा है
बचपन से रखता आया हूँ तेरा हिस्सा एक तरफ़
तहज़ीब हाफ़ी
ग़ज़ल
हर जनम में मुझे यादों के खिलौने दे के
वो बिछड़ता रहा मुझ से मिरा बचपन बन के