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ग़ज़ल
दूसरों के वास्ते बद-हाल रह कर क्या मिला
ग़म छुपा कर उम्र भर ख़ुश-हाल रह कर क्या मिला
सत्याधार सत्या
ग़ज़ल
आख़िर आख़िर ख़ुद भी ज़ख़्मी हो कर होते हैं बद-हाल
अव्वल अव्वल ज़ख़्मों के सौदागर अच्छे रहते हैं
माहिर अब्दुल हई
ग़ज़ल
सुकूँ कतरा नहीं बरसा सदा तड़पे सदा तरसे
उसी बद-हाल मंज़र ने लगा दी आग पानी में
मोनिका शर्मा सारथी
ग़ज़ल
अमीरों से कभी बातें सुनो बद-हाल रिश्तों की
ज़ियादा हो अगर दौलत तो रिश्ते टूट जाते हैं
पूनम विश्वकर्मा
ग़ज़ल
जो था फ़ुज़ूल-ख़र्च वो बद-हाल ही रहा
कम ख़र्च जिस का था वो है ख़ुश-हाल आज भी
राना मज़हरी देहलवी
ग़ज़ल
बद-हाल बहुत था उस पर भी ऐ यार किसी ने ली न ख़बर
बड़ मार के तेरे कूचे से आख़िर को तिरा मज्ज़ूब गया
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
इंसाँ आ कर नई डगर पर खो बैठा है होश-ओ-हवास
पहले भी बेहोश था लेकिन ऐसा भी बद-हाल न था