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ग़ज़ल
घर की बुनियादें दीवारें बाम-ओ-दर थे बाबू जी
सब को बाँध के रखने वाला ख़ास हुनर थे बाबू जी
आलोक श्रीवास्तव
ग़ज़ल
कुछ तो हो कर दू-बदू कुछ डरते डरते कह दिया
दिल पे जो गुज़रा था हम ने आगे उस के कह दिया
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
नहीं अक़्ल-ओ-फ़हम की दस्तरस हैं अजीब दिल के मुआ'मले
कभी निकहतों से लतीफ़-तर कभी रसन-ओ-दार से दू-बदू
असरारुल हक़ असरार
ग़ज़ल
बदन के दश्त में कुछ दर्द के आहू निकलते हैं
मिरी ग़ज़लों में इस ख़ातिर नए पहलू निकलते हैं
यासिर गुमान
ग़ज़ल
कभी भी सामने से दू-बदू होता नहीं ज़ालिम
अजब बुज़दिल है हर दम फ़ासले से वार करता है
अब्दुल मजीद ख़ाँ मजीद
ग़ज़ल
सस्ती शोहरत हासिल करने कूचों में चौबारों में
खोटे सिक्के उछले उछले फिरते हैं बाज़ारों में