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ग़ज़ल
मोहब्बत इक न इक दिन ये हुनर तुम को सिखा देगी
बग़ावत पर उतरना और ख़ुद-मुख़्तार हो जाना
मुनव्वर राना
ग़ज़ल
ये मुल्क अपना है और इस मुल्क की सरकार अपनी है
मिली है नौकरी जब से बग़ावत छोड़ दी हम ने
शहज़ाद अहमद
ग़ज़ल
ज़िंदान-ए-जहाँ से ये नफ़रत ऐ हज़रत-ए-वाइज़ क्या कहना
अल्लाह के आगे बस न चला बंदों से बग़ावत कर बैठे