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ग़ज़ल
गर्म आँसू और ठंडी आहें मन में क्या क्या मौसम हैं
इस बगिया के भेद न खोलो सैर करो ख़ामोश रहो
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
कोई बग़िया समर के बिन रहे सूनी न इस ख़ातिर
शजर बाबा के आँगन का पुराना छूट जाता है
अन्जुमन मंसूरी आरज़ू
ग़ज़ल
मेरे अहद के बच्चे हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई हैं
अमन की बगिया में है अब तो हर पल मौसम दंगों का
परवेज़ रहमानी
ग़ज़ल
जीवन की बगिया से हम को क्या सुंदर सौग़ात मिली
फूलों का सेहरा बाँधा तो शो'लों की बारात मिली
सोहन राही
ग़ज़ल
हर इक पौदा सूख गया है दिल की उजड़ी बगिया में
पत्ता पत्ता ढूँड रहा है छाया निर्मल गोरी की
प्रकाश तिवारी
ग़ज़ल
शह-ए-बे-ख़ुदी ने अता किया मुझे अब लिबास-ए-बरहनगी
न ख़िरद की बख़िया-गरी रही न जुनूँ की पर्दा-दरी रही
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
वो जब भी करते हैं इस नुत्क़ ओ लब की बख़िया-गरी
फ़ज़ा में और भी नग़्मे बिखरने लगते हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
बस-कि रोका मैं ने और सीने में उभरीं पै-ब-पै
मेरी आहें बख़िया-ए-चाक-ए-गरेबाँ हो गईं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
क्या क्या उलझता है तिरी ज़ुल्फ़ों के तार से
बख़िया-तलब है सीना-ए-सद-चाक शाना क्या