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ग़ज़ल
इक लहज़ा बहे आँसू इक लहज़ा हँसी आई
सीखे हैं नए दिल ने अंदाज़-ए-शकेबाई
सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम
ग़ज़ल
बहके बहके से बादल हैं क्या जाने ये जाएँ किधर
बदली हुई हवाओं का है उन पर आज दबाव बहुत
क़ैसर शमीम
ग़ज़ल
बहके जो हम मस्त आ गए सौ बार मस्जिद से उठा
वा'इज़ को मारे ख़ौफ़ के कल लग गया जुल्लाब सा
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
नसीहत है अबस नासेह बयाँ नाहक़ ही बकते हैं
जो बहके दुख़्त-ए-रज़ से हैं वो कब इन से बहकते हैं