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ग़ज़ल
क़ौल-ए-हक़ पर हुए कब मुत्तफ़िक़ अहल-ए-दुनिया
एक क़ुरआन है जिस की कई तफ़्सीरें हैं
इमदाद अली बहर
ग़ज़ल
अहल-ए-दुनिया ख़ुश हों या ना-ख़ुश हों कुछ पर्वा नहीं
आसरा रखता है ये बंदा ख़ुदा की ज़ात का
इमदाद अली बहर
ग़ज़ल
हम ग़रीबों से न पूछो ने'मत-ए-दुनिया का हाल
शुक्र कर के खा लिया जो कुछ मिला अच्छा बुरा
इमदाद अली बहर
ग़ज़ल
अहल-ए-दुनिया में मोअस्सिर है हर एक शय का रिवाज
मस्त हो जाएँगे सब दौर-ए-मुग़ाँ होने दो