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ग़ज़ल
कश्ती-ए-दिल की इलाही बहर-ए-हस्ती में हो ख़ैर
नाख़ुदा मिलते हैं लेकिन बा-ख़ुदा मिलता नहीं
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
हमारे दिल को बहर-ए-ग़म की क्या ताक़त जो ले बैठे
वो कश्ती डूब कब सकती है जिस के ना-ख़ुदा तुम हो
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
मैं बहर-ए-फ़िक्र में हूँ ग़र्क़ इस लिए 'नायाब'
गुहर मुझे भी कोई ज़ेर-ए-आब मिल जाए
जहाँगीर नायाब
ग़ज़ल
बहर-ए-ख़ुदा ख़ामोश रहो बस देखते जाओ अहल-ए-नज़र
क्या लग़ज़ीदा-क़दम हैं उस के क्या दुज़दीदा-निगाही है
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
है मौज-ए-बहर-ए-इश्क़ वो तूफ़ाँ कि अल-हफ़ीज़
बेचारा मुश्त-ए-ख़ाक था इंसान बह गया