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ग़ज़ल
एक सख़ी को अपना समझ कर अर्ज़-ए-हाल की ठानी है
बैरी दिल कहता है पगले कासा भी छिन जाएगा
हफ़ीज़ मेरठी
ग़ज़ल
मिरी नींदों का जो बैरी उसी कम-लुत्फ़ की ख़ातिर
ये तरसा भी ये जागा भी मुझे इस दिल पे हैरत है
सुमन शाह
ग़ज़ल
सन्नाटे में जब जब छनकी बैरी पड़ोसन की पायल
जाने वाले याद में तेरी रात रात-भर जागी मैं
नसरीन नक़्क़ाश
ग़ज़ल
दीवानों की सोहबत में यूँ और तो कुछ हो ना हो लेकिन
इतना तय है नींदें बैरी रात सहेली हो जाएगी