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ग़ज़ल
आँखें मूँद किनारे बैठो मन के रक्खो बंद किवाड़
'इंशा'-जी लो धागा लो और लब सी लो ख़ामोश रहो
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
आलम-ए-हुस्न ख़ुदाई है बुतों की ऐ 'ज़ौक़'
चल के बुत-ख़ाने में बैठो कि ख़ुदा याद रहे
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
साग़र सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
हमें देखो हमारे पास बैठो हम से कुछ सीखो
हमीं ने प्यार माँगा था हमीं ने दाग़ पाए हैं
किश्वर नाहीद
ग़ज़ल
हम कोई नादान नहीं कि बच्चों की सी बात करें
जीना कोई खेल नहीं है बैठो तुक की बात करें
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
ग़ज़ल
वो आते हैं 'शकील' अब अपने दिल से हाथ धो बैठो
निगाह-ए-नाज़ की क़ीमत अदा करने का वक़्त आया
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
क्या तुम ने कहा दिल से क्या दिल ने कहा हम से
बैठो तो सुनाएँ हम इक रोज़ ये अफ़्साना