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ग़ज़ल
उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा
यूँही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
मंदिरों में संख बाजे मस्जिदों में हो अज़ाँ
शैख़ का धर्म और दीन-ए-बरहमन आज़ाद है
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
यूँ गजर सुब्ह का जल्दी से बजे वस्ल की रात
अरे बे-रहम अरे दिल के सताने वाले
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
बारा बजे के ब'अद इक दिन को निकालते हुए
देखा तो जा चुका हूँ पर पकड़ा नहीं गया हूँ मैं
फ़ैज़ान हाशमी
ग़ज़ल
बचपन याद के रंग-महल में कैसे कैसे फूल खिले
ढोल बजे और आँसू टपके कहीं मोहर्रम होने लगा
अब्दुल हमीद
ग़ज़ल
सारा घर सोता है दो घंटे में आएगा अख़बार
आज 'मुज़फ़्फ़र' पाँच बजे ही कैसे बिस्तर छोड़ दिया
मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
ग़ज़ल
'मुसहफ़ी' बाजे है नौबत तो दर-ए-'आसिफ़' पर
क्या ही आवाज़-ए-बम-ओ-ज़ेर भली लगती है