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ग़ज़ल
हदीस-ए-सोज़-ओ-साज़-ए-शम्-ओ-परवाना नहीं कहते
हम अपना हाल-ए-दिल कहते हैं अफ़्साना नहीं कहते
फ़िगार उन्नावी
ग़ज़ल
दिल आया इस तरह आख़िर फ़रेब-ए-साज़-ओ-सामाँ में
उलझ कर जैसे रह जाए कोई ख़्वाब-ए-परेशाँ में
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
ग़ज़ल
ये फ़ज़ा-ए-साज़-ओ-मुज़रिब ये हुजूम-ताज-ए-दाराँ
चलो आओ हम भी निकलें ब-लिबास-ए-सोगवाराँ
अज़ीज़ हामिद मदनी
ग़ज़ल
जाने दो इन नग़्मों को आहंग-ए-शिकस्त-ए-साज़ न समझो
दर्द-भरी आवाज़ तो सुन लो दर्द-भरी आवाज़ न समझो
क़मर जमील
ग़ज़ल
चश्म-ओ-अबरू के लिए अश्क हैं साज़-ओ-नग़्मा
मेरा गिर्या मिरी आँखों का ग़ज़ल-ख़्वाँ होना
एस ए मेहदी
ग़ज़ल
ढूँढ कुछ और ही इबलाग़ की सूरत ऐ 'साज़'
शरह ओ तफ़्सीर नहीं रम्ज़ ओ किनाया भी नहीं
अब्दुल अहद साज़
ग़ज़ल
पर-फ़िशाँ अश'आर हैं या है फ़रिश्तों का नुज़ूल
या 'अदम ने इक बला-ए-नागहानी छोड़ दी
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
ग़ज़ल
जल गया धूप में यादों का ख़ुनुक साया भी
बे-नवा दश्त-ए-बला में कोई हम सा भी नहीं