aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "baloch"
है दुआ यही मेरी बद-दुआ' से बच जाओआह-ए-सर्द भरने में देर कितनी लगती है
कुछ फ़ाएदे भी होते हैं उजड़े मकान केअल्फ़ाज़ इस में गूँजते हैं रफ़्तगान के
अभी घर के मसाइल हल करेंगेतिरी ज़ुल्फ़ों की बातें कल करेंगे
इस वास्ते अदू को गवारा नहीं था मैंमारा गया था जंग में हारा नहीं था मैं
सज़ा मिली है तिरी मुख़्तसर रिफ़ाक़त कीतमाम उम्र तिरे हिज्र की हिफ़ाज़त की
मारा इस शर्त पे अब मुझ को दोबारा जाएनोक-ए-नेज़ा से मिरा सर न उतारा जाए
वो शख़्स मुझे जब से दिखाई नहीं देताआँखें हैं मगर कुछ भी सुझाई नहीं देता
ज़िंदगी मैं ने हज़ारों ख़्वाहिशों में बाँट दीजैसे इक तस्वीर टूटे आइनों में बाँट दी
ख़याल इस बात का दिल से मिरे अक्सर नहीं जातामैं घर जाने की जल्दी में उमूमन घर नहीं जाता
उस को जब याद नहीं बैठ के रो लेते हैंआ शब-ए-हिज्र कहीं बैठ के रो लेते हैं
बदन छुपाने को कुछ मेरे पास था ही नहींजो ज़ेब-ए-तन था वो मेरा लिबास था ही नहीं
रक़्स करती हुई धरती पे खड़ा कर के मुझेकिस जगह छोड़ दिया ख़ुद से जुदा कर के मुझे
ये किस डर से निकाला जा रहा हैमुझे घर से निकाला जा रहा है
तिरी आँखों से जब तक देखता हूँयक़ीं मानो मैं रब तक देखता हूँ
कुछ इस तरह का अजब इम्तिहान देना पड़ामुझे ज़मीं के एवज़ आसमान देना पड़ा
जब शाम-ढले हिज्र तिरा मुझ से मिला थामैं अश्कों के जलते हुए ख़ेमों में खड़ा था
फ़लक से खींच के ला या ज़मीं से खींच के लामिरे बुढ़ापे जवानी कहीं से खींच के ला
इस तरह की भी कई मोजिज़-नुमा अम्साल देचार दिन की ज़िंदगी में हिज्र के सौ साल दे
उन्हें ख़बर थी जो पहलू बदल रहे थे मिरेमैं मर चुका था मगर साँस चल रहे थे मिरे
जिस को बतलाया कि ये घर है ये आँगन है मिरामुझ को मालूम नहीं था कि वो दुश्मन है मिरा
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