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ग़ज़ल
बशीर बद्र
ग़ज़ल
क्या फ़र्ज़ है कि हम भी बनें क़ैस-ए-आमिरी
राह-ए-जुनूँ में क्यूँ हो किसी नक़्श-ए-पा की शर्त
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
ग़ज़ल
तुम्हारे दर के सवाली बनें तो कैसे बनें
तुम्हारे दर पे तो काँटे अना के रक्खे हैं
कश्मीरी लाल ज़ाकिर
ग़ज़ल
लो साहब आफ़्ताब कहाँ और हम कहाँ
अहमक़ बनें हम इस को न समझें अगर ग़लत