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ग़ज़ल
मेरा साँस उखड़ते ही सब बैन करेंगे रोएँगे
या'नी मेरे बा'द भी या'नी साँस लिए जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
मछलियाँ बाज़ू पे उभरीं साक़-ए-पा शमएँ बनीं
ख़ूब साहब ने निकाले अब तो बारे हाथ पाँव
आग़ा अकबराबादी
ग़ज़ल
कैसी कैसी आहटें अल्फ़ाज़ का पैकर बनीं
कैसे कैसे अक्स मेरी चश्म-ए-तर में रह गए
अख़्तर होशियारपुरी
ग़ज़ल
ज़ुल्फ़ देखी उस की जिन क़ौमों ने वो काफ़िर बनीं
रुख़ नज़र आया जिन्हें वो सब मुसलमाँ हो गईं