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ग़ज़ल
यारो कुछ तो ज़िक्र करो तुम उस की क़यामत बाँहों का
वो जो सिमटते होंगे उन में वो तो मर जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
दस्त-ए-नाज़ुक ने ज़माने को किया हल्क़ा-ब-गोश
क्या खुले बंदों नज़र आईं तुम्हारी चूड़ियाँ
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
शैख़-जी मिंदील कुछ बिगड़ी सी है क्या आप भी
रिंदों बाँकों मय-कशों आशुफ़्ता दस्तारों में थे
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
दिन का समय है, चौक कुएँ का और बाँकों के जाल
ऐसे में नारी तू ने चली फिर तीतरी वाली चाल
अली अकबर नातिक़
ग़ज़ल
बादा फिर बादा है मैं ज़हर भी पी जाऊँ 'क़तील'
शर्त ये है कोई बाँहों में सँभाले मुझ को
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
नासिर काज़मी
ग़ज़ल
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
अंधों बहरों की नगरी में यूँ कौन तवज्जोह करता है
माहौल सुनेगा देखेगा जिस वक़्त बजेंगी ज़ंजीरें