आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "bar-sar-e-kuu-e-jafaa"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "bar-sar-e-kuu-e-jafaa"
ग़ज़ल
हमारी ख़ाक-ए-अफ़्सुर्दा सर-ए-कू-ए-बुताँ रख दी
कहाँ की चीज़ थी तू ने कहाँ ऐ आसमाँ रख दी
मुसव्विर करंजवी
ग़ज़ल
ख़्वाहिशों से बर-सर-ए-पैकार हो जाना पड़ा
ख़ुद ही दिल की राह में दीवार हो जाना पड़ा
नवेद फ़िदा सत्ती
ग़ज़ल
ख़ौफ़-ओ-वहशत बर-सर-ए-बाज़ार रख जाता है कौन
यूँ रग-ए-एहसास पर तलवार रख जाता है कौन
अब्दुस्समद ’तपिश’
ग़ज़ल
बर-सर-ए-लुत्फ़ आज चश्म-ए-दिल-रुबा थी मैं न था
ढूँढती मुझ को निगाह-ए-आश्ना थी मैं न था
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
ग़ज़ल
दिमाग़-ओ-दीदा-ओ-दिल बर-सर-ए-पैकार होते हैं
मोहब्बत की कहानी में कई किरदार होते हैं