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ग़ज़ल
बर्ग-ओ-गुल-ओ-तुयूर सब शाख़ों की सम्त उड़ गए
क़सर-ऐ-जहाँ-पनाह में नक़्श-ओ-निगार भी नहीं
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल
ज़ख़्म-ए-ताज़ा बर्ग-ए-गुल में मुंतक़िल होते गए
पंजा-ए-सफ़्फ़ाक में ख़ंजर ख़जिल होते गए
ज़हीर सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
अंजुम-ओ-मेहर-ए-गुल-ओ-बर्ग-ओ-सबा कुछ भी नहीं
ख़ूब देखा ब-ख़ुदा ग़ैर-ए-ख़ुदा कुछ भी नहीं
दिल अय्यूबी
ग़ज़ल
पोशाक तेरी ऐ गुल-ए-ख़ंदाँ है सुर्ख़ सब्ज़
या फ़स्ल-ए-गुल से रंग-ए-गुलिस्ताँ है सुर्ख़ सब्ज़
वहीदुद्दीन अहमद वहीद
ग़ज़ल
तिरी महफ़िल में क्या क्या ऐ गुल-ए-गुलफ़ाम मिलता है
किसी को अश्क मिलते हैं किसी को जाम मिलता है
सदा अम्बालवी
ग़ज़ल
हमेशा सैर-ए-गुल-ओ-लाला-ज़ार बाक़ी है
अगर बग़ल में दिल-ए-दाग़-दार बाक़ी है
मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही
ग़ज़ल
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
ख़ार-ओ-ख़स-ओ-ख़ाशाक तो जानें एक तुझी को ख़बर न मिले
ऐ गुल-ए-ख़ूबी हम तो अबस बदनाम हुए गुलज़ार के बीच
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
शमीम-ए-ज़ुल्फ़ ओ गुल-ए-तर नहीं तो कुछ भी नहीं
दिमाग़-ए-इश्क़ मोअत्तर नहीं तो कुछ भी नहीं