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ग़ज़ल
कोई भी मौसम हो दिल की आग कम होती नहीं
मुफ़्त का इल्ज़ाम रख देते हैं बरसातों पे हम
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
मय-ख़ाने का अफ़्सुर्दा माहौल तो यूँही रहना है
ख़ुश्क लबों की ख़ैर मनाओ कुछ न कहो बरसातों को
नासिर काज़मी
ग़ज़ल
अह्द-ए-जमशेद में था लुत्फ़-ए-मय-ओ-अब्र-ओ-हवा
कब ये माशूक़ थे उस वक़्त की बरसातों में
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
फ़ैसला ये हो न पाया रोज़ की बातों के बाद
ख़ून के धब्बे धुलेंगे कितनी बरसातों के बाद
मुशताक़ अहमद मुशताक़
ग़ज़ल
धूप के मौसम में थे पायाब दरिया सब मगर
कैसे कैसे ख़ुश्क मंज़र अब के बरसातों में हैं
असअ'द बदायुनी
ग़ज़ल
आन मिले तो भूल का जादू हम दोनों पर तारी है
कौन बताए कल क्या गुज़री फ़ुर्क़त की बरसातों में
अनवर नदीम
ग़ज़ल
अब तो उठता जा रहा है मौसमों से ए'तिबार
दिल किसी सहरा में है और जिस्म बरसातों के बीच
जावेद शाहीन
ग़ज़ल
ख़म्याज़ा है बाम-ओ-दर पर जाने किन बरसातों का
नम-दीदा पुल घूम रहे हैं हर सौ सीली मिट्टी में
सज्जाद बलूच
ग़ज़ल
मैं तेरा मुंतज़िर हूँ जल्वा-ए-जानाना बरसों से
छलक उट्ठा है मेरे सब्र का पैमाना बरसों से