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ग़ज़ल
न बरतो उन से अपनाइयत के तुम बरताव ऐ 'मुज़्तर'
पराया माल इन बातों से अपना हो नहीं सकता
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
किस को फ़ुर्सत थी कि बतलाता तुझे इतनी सी बात
ख़ुद से क्या बरताव तुझ से छूट कर मैं ने किया
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
सारी उम्र ही दिल से अपना ऐसा कुछ बरताव रहा
जैसे खेल में हारने वाले बच्चे को बहलाते हैं
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
जुदाई किस तरह बरताव हम लोगों से करती है
मिज़ाजन हम-सुख़नवर बे-दिल-ओ-बे-ज़ार कैसे हैं
ऐतबार साजिद
ग़ज़ल
इक जैसा बरताव हो कैसे कच्चे सच और झूट के साथ
कोई क़तार में लग कर आया कोई पैराशूट के साथ
अज़हर फ़राग़
ग़ज़ल
अगर हम जान देते हैं तो उन के हुस्न-ए-सूरत पर
हमें बरताव से अंदाज़ से या ढब से क्या मतलब
नूह नारवी
ग़ज़ल
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
नूह नारवी
ग़ज़ल
अगर दुश्मन से ऐसे पेश आते तो मज़ा पाते
करूँ क्या अर्ज़ जो बरताव मुझ से आप ने बरता