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ग़ज़ल
बशीर बद्र
ग़ज़ल
असलम गुरदासपुरी
ग़ज़ल
असलम गुरदासपुरी
ग़ज़ल
दर्जा-ए-उज़मा पे फ़ाएज़ तो यहाँ इंसाफ़ है
बे-क़ुसूरों व बे-बसों का मुंतज़िर ज़िंदाँ हुआ
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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दर्जा-ए-उज़मा पे फ़ाएज़ तो यहाँ इंसाफ़ है
बे-क़ुसूरों व बे-बसों का मुंतज़िर ज़िंदाँ हुआ