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ग़ज़ल
कोई वरक़ दिखा जो अश्क-ए-ख़ूँ से तर-ब-तर न हो
कोई ग़ज़ल दिखा जहाँ वो दाग़ जल नहीं रहा
जव्वाद शैख़
ग़ज़ल
ग़म का न दिल में हो गुज़र वस्ल की शब हो यूँ बसर
सब ये क़ुबूल है मगर ख़ौफ़-ए-सहर को क्या करूँ
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
उठ के कपड़े बदल घर से बाहर निकल जो हुआ सो हुआ
रात के बा'द दिन आज के बा'द कल जो हुआ सो हुआ
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
इक फूल मेरे पास था इक शम्अ' मेरे साथ थी
बाहर ख़िज़ाँ का ज़ोर था अंदर अँधेरी रात थी
अहमद मुश्ताक़
ग़ज़ल
किसी की याद में आँसू का रिश्ता इस तरह रक्खो
कि दिल पहलू अगर बदले तो चेहरा तर-ब-तर क्यूँ हो
इन्दिरा वर्मा
ग़ज़ल
तिरे हिज्र में मह-ए-सीम-बर कोई ग़ौर से जो करे नज़र
मिरी सुब्ह शाम से है बतर मिरा रोज़ शब से सियाह है