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ग़ज़ल
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
दर्द-ए-ग़म-ए-फ़िराक से आँखें हैं अश्क-बार क्या
रोने से होगी मुख़्तसर ज़हमत-ए-इंतिज़ार क्या
शोला करारवी
ग़ज़ल
बयान-ए-दर्द जब करता हूँ मैं ऊला-ओ-सानी में
बहुत मिलती मोहब्बत है मुझे फिर शे'र-ख़्वानी में
साहेब श्रेय
ग़ज़ल
बहुत मुश्किल है पास-ए-लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-जिगर करना
किसी से इश्क़ करना और वो भी उम्र भर करना
जमील मज़हरी
ग़ज़ल
जो लज़्ज़त-ए-आशना-ए-दर्द-ए-हिज्राँ होते जाते हैं
सर-ए-कू-ए-तमन्ना वो ग़ज़ल-ख़्वाँ होते जाते हैं
मुज़फ्फ़र अहमद मुज़फ्फ़र
ग़ज़ल
इलाज-ए-दर्द-ए-दिल-ए-सोगवार हो न सका
वो ग़म-नवाज़ रहा ग़म-गुसार हो न सका