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ग़ज़ल
बयान मेरठी
ग़ज़ल
मुद्दई दर-पर्दा कट कट जाते हैं शक्ल-ए-नियाम
ऐ 'बयाँ' मेरी ज़बान-ए-तेज़ कहलाती है तेग़
बयान मेरठी
ग़ज़ल
रेख़्ता रश्क-ए-फ़ारसी उस से न हो सका बयाँ
महफ़िल-ए-उर्स-ए-'मीर' में शे'र मिरे सुना कि यूँ
बयान मेरठी
ग़ज़ल
हुज़ूर-ए-बुलबुल-ए-किल्क-ए-'बयाँ' किस तरह खुलते मुँह
कि बू-ए-ग़ुंचा साँ महजूब नुत्क़-ए-हर-सुख़न वाँ था
बयान मेरठी
ग़ज़ल
बुतों पर लात मारी मेहर-ओ-मह से फेर लीं आँखें
'बयाँ' अल्लाह रे ग़म्ज़ा मिरे हुस्न-ए-अक़ीदत का
बयान मेरठी
ग़ज़ल
जूँ मिसाल उस की नुमूदार हुई तूँ ही 'बयाँ'
तपिश-ए-दिल ने किया ख़्वाब से बेदार मुझे
बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान
ग़ज़ल
मत दर्द-ए-दिल को पूछ ब-क़ौल-ए-'फ़ुग़ाँ' 'बयाँ'
इक उम्र चाहिए मिरा क़िस्सा तमाम हो
बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान
ग़ज़ल
बाज़े ही औक़ात राहत हम को दी है चर्ख़ ने
रंज ओ ग़म ही उस सितमगर ने 'बयाँ' अक्सर दिया
बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान
ग़ज़ल
'बयाँ' को ज़ोफ़ है इतना कि बाद-ए-तुंद के रोज़
जो ख़त लिखे तो उसे ले के उड़ चले काग़ज़
बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान
ग़ज़ल
फिर दूध की बुढ़ापे में आवे न मुँह से बास
आख़िर कहाँ तलक ये 'बयाँ' गुफ़्तुगू-ए-शीर