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ग़ज़ल
मिरा तर्ज़-ए-बयान-ए-शौक़ बेबाकाना होता है
अमल जो रिंद से होता है वो रिंदाना होता है
बेदिल अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
घर बुलाता है कभी शौक़-ए-सफ़र खींचता है
दौड़ पड़ता हूँ मुझे जो भी जिधर खींचता है
निसार महमूद तासीर
ग़ज़ल
सभी को ख़्वाहिश-ए-तस्ख़ीर-ए-शौक़-ए-हुक्मरानी है
हमें लगता है अपना दिल नहीं इक राजधानी है
ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर
ग़ज़ल
हर ज़र्रा चश्म-ए-शौक़-ए-सर-ए-रहगुज़र है आज
दिल महव-ए-इंतिज़ार है और किस क़दर है आज
हमीद नागपुरी
ग़ज़ल
बता क्या क्या तुझे ऐ शौक-ए-हैराँ याद आता है
वो जान-ए-आरज़ू वो राहत-ए-जाँ याद आता है