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ग़ज़ल
मोहब्बत ज़िंदगी है 'बज़्म' लेकिन लोग कहते हैं
कि जाम-ए-ज़हर को समझा है जाम-ए-अंगबीं मैं ने
बज़्म अंसारी
ग़ज़ल
मैं 'बज़्म' सोज़-ए-तग़ाफ़ुल से जल बुझा लेकिन
उसे न ज़हमत-ए-फ़िक्र-ओ-ख़याल दी मैं ने
बज़्म अंसारी
ग़ज़ल
वो 'उम्र 'बज़्म' कि जिस का सुराग़ ही न मिला
उस उम्र-ए-रफ़्ता की इक यादगार दिल ही तो है
बज़्म अंसारी
ग़ज़ल
गुरेज़ 'बज़्म' ज़रूरी है इल्तिफ़ात में भी
हो रस्म-ओ-राह तो हद से कभी बढ़ूँ भी नहीं
बज़्म अंसारी
ग़ज़ल
वो 'बज़्म' जो दिल-ओ-जाँ से 'अज़ीज़ था हम को
उसी 'अज़ीज़ ने दी हैं अज़िय्यतें क्या क्या
बज़्म अंसारी
ग़ज़ल
बज़्म से उस की चले आओ जो बिगड़ा वो बुत
बैठने को कोई फ़िक़रा भी बनाया न गया
आशिक़ हुसैन बज़्म आफंदी
ग़ज़ल
पढ़ी ऐ 'बज़्म' जब मैं ने ग़ज़ल कट कट गए हासिद
रही हर मा'रका में तेज़ शमशीर-ए-ज़बाँ मेरी
आशिक़ हुसैन बज़्म आफंदी
ग़ज़ल
ऐ 'बज़्म' उठा करता है क्यों दर्द जिगर में
सच कह किसे देखा कि तबीअत नहीं अच्छी
आशिक़ हुसैन बज़्म आफंदी
ग़ज़ल
ऐ 'बज़्म' मुझ से करते वो इक़रार-ए-वस्ल क्या
वो तो ये कहिए उन की ज़बाँ से निकल गया
आशिक़ हुसैन बज़्म आफंदी
ग़ज़ल
निवाला मुँह का नहीं फ़न्न-ए-शाइरी ऐ 'बज़्म'
ये काम वो है कि जो उम्र भर नहीं आता
आशिक़ हुसैन बज़्म आफंदी
ग़ज़ल
अदू की बज़्म में ऐ 'बज़्म' ये शब तो बसर कर लो
अगर देखा नहीं जाता तो मुँह अपना उधर कर लो