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ग़ज़ल
दिल बचे क्यूँकर बुतों की चश्म-ए-शोख़-ओ-शंग से
अपना घर तो सूझता है सैकड़ों फ़रसंग से
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
गर्दिश-ए-जाम भी है रक़्स भी है साज़ भी है
जिस में नग़्मों का तलातुम है वो आवाज़ भी है
राम कृष्ण मुज़्तर
ग़ज़ल
दिल ब-अफ़्ज़ाइश-ए-ख़ुद्दारी-ए-आहंग-ए-सुख़न
ख़ाएफ़-ए-अहल-ए-नज़र हो ये ज़रूरी तो नहीं
हादिस सलसाल
ग़ज़ल
शु'ऊर-ए-'इश्क़ है तो बे-नियाज़-ओ-बे-गुमाँ हो जा
शि'आर-ए-'इश्क़ ये है आप अपना राज़-दाँ हो जा
धर्मेंद्र नाथ
ग़ज़ल
इम्तियाज़ काविश
ग़ज़ल
अज़ान-ए-फ़ज्र के आहंग में महव-ए-सुख़न है
कोई मुझ से ख़ुदा के रंग में महव-ए-सुख़न है