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ग़ज़ल
बिसात-ए-रंग-ओ-बू आतिश-फ़िशाँ मालूम होती है
रग-ए-गुल में निहाँ बर्क़-ए-तपाँ मालूम होती है
लक्ष्मी नारायण फ़ारिग़
ग़ज़ल
तमानिय्यत की लाज़िम शर्त है ख़ुश-निय्यती वर्ना
तग-ओ-दौ बे-बिज़ाअत और सारी हाओ-हू आतिश
ज़फ़र मेहदी
ग़ज़ल
रूठोगे बे-सबब तो मनाया न जाएगा
बेजा तुम्हारा नाज़ उठाया न जाएगा