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ग़ज़ल
हिजाब अब्बासी
ग़ज़ल
हमारी महफ़िलों में बे-हिजाब आने से क्या होगा
नहीं जब होश में हम जल्वा फ़रमाने से क्या होगा
इम्तियाज़ अली अर्शी
ग़ज़ल
हुआ वो ख़ूब-रू यूँ बे-हिजाब आहिस्ता आहिस्ता
नज़र देखे है जैसे कोई ख़्वाब आहिस्ता आहिस्ता
अहमद मुशर्रफ़ ख़ावर
ग़ज़ल
वो पर्दे से निकल कर सामने जब बे-हिजाब आया
जहान-ए-इश्क़ में यक-बारगी इक इंक़लाब आया
अनवर सहारनपुरी
ग़ज़ल
दुनिया में बे-हिजाब मिरी ज़ात भी तो हो
ऐ 'इश्क़ तेरी कोई करामात भी तो हो