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ग़ज़ल
किया है उस नज़र ने सरफ़राज़ अहल-ए-मोहब्बत को
किसी को ताज-दारी से किसी को बे-कुलाही से
अहमद जावेद
ग़ज़ल
इज्ज़-ए-ख़ाक-सारी क्यूँ फ़ख़्र-ए-कज-कुलाही क्या
जब मोहब्बतें की हैं फिर कोई गवाही क्या
सलीम कौसर
ग़ज़ल
ग़ुलाम मुस्तफ़ा फ़राज़
ग़ज़ल
कज-कुलाही को यक़ीं था घुट के मर जाएँगे लोग
हम ये कहते थे कि सड़कों पर निकल आएँगे लोग
सय्यद आशूर काज़मी
ग़ज़ल
हम जुनूँ-शिआ'रों में आते आते आती है
शान-ए-बे-नियाज़ी भी आन-ए-कज-कुलाही भी