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ग़ज़ल
'मेहर' बे-लुत्फ़ है बज़्म-ए-शोअ'रा बे-मा'शूक़
बुलबुलें चहचहे में हैं कोई गुलफ़ाम नहीं
हातिम अली मेहर
ग़ज़ल
तुफ़ ब-मा'शूक़-मिज़ाजाँ सर-ए-हर-यार पे ख़ाक
ढल गए होश तो अब ख़ामा-ए-बेदार पे ख़ाक
अब्दुल्लाह साक़िब
ग़ज़ल
मिरी नज़रों में बे-मफ़्हूम थी ये रौनक़-ए-दुनिया
मैं इस दुनिया को यादों के सहारे भूल बैठा था
मसूद तन्हा
ग़ज़ल
हुआ है तौर-ए-बर्बादी जो बे-दस्तूर पहलू में
दिल-ए-बेताब को रहता है ना-मंज़ूर पहलू में
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
समझता हूँ मैं बे-मफ़्हूम सी आवाज़ शिकवे को
मुसीबत ख़ुद मदद करती है आ कर इम्तिहानों में
याक़ूब उस्मानी
ग़ज़ल
वो दिल की धड़कनों में भी रक़्साँ है हर घड़ी
माशूक़-ए-बे-मिसाल है नूर-ए-नज़र भी है
मोहम्मद मुस्तहसन जामी
ग़ज़ल
क्या क्या फ़ित्ने सर पर उस के लाता है माशूक़ अपना
जिस बे-दिल बे-ताब-ओ-तवाँ को इश्क़ का मारा जाने है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
ख़ुश-नूदी-ए-माशूक़ है रंजूर है आशिक़
बे-दर्द है वो ख़स्ता कि ले नाम दवा का
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
ग़ज़ल
परी तुम हो मिरी जाँ हूर तुम हो मह-लक़ा तुम हो
जहाँ में जितने हैं माशूक़ उन सब से जुदा तुम हो
अबुल बक़ा सब्र सहारनपुरी
ग़ज़ल
ग़म्ज़ा-ए-मा'शूक़ मुश्ताक़ों को दिखलाती है तेग़
सूरत-ए-अबरू हमारे सर चढ़ी जाती है तेग़
बयान मेरठी
ग़ज़ल
ग़म नहीं मुझ को जो वक़्त-ए-इम्तिहाँ मारा गया
ख़ुश हूँ तेरे हाथ से ऐ जान-ए-जाँ मारा गया